तृषित चातक सी धरा निहारती नितदिन घुमड़ते मेघ बरसाये बूँदें नेह की संतप्त बेजान जलती काया संपोषित करूं स्वयं व आश्रितों की जीवंतता जागे मृतप्राय वृक्षों लता गुल्मों में संचार हो उर्जा नई सृष्टि का संवर्द्धन करूं स्वयं जीकर आश्रितों को जीने का सुअवसर प्रदान करूं मै धरा जननी वसुन्धरा । प्रीति #मेघ#वसुंधरा#जीवन# आधार #yqdidi#yopowrimo