लूटी गई सैंकड़ों बार, अब भी लूटी जा रही लगातार ! सोने की चिड़िया कहलाती थी, अब कर्ज़ अपरंपार !! सोने की लंका की लग गई लंका, लोग लगा रहे आग ! सत्ताधीश कुछ तो भगा दिये, कुछ खुद ही रहे भाग !! चिड़िया जो सोने की थी, अपार कर्ज़ में धंसी है ! चंद घरानों के गलियारों में, हर बैंक की रकम फंसी है !! बैंक जमा के अलावा, कर्ज़ लेने देने पर रोक ! जायज रक़म हरेक ने, बैंक में ही देनी झोंक !! ( ....अनुशेष अनुशीर्षक में ) बैंक जमा सुरक्षितता सीमा अब पाँच लाख रुपये मात्र ! आप कितना भी बचा पाओ, पांच लाख के ही हो पात्र !! छोटी मोटी एक बीमारी, सारी रक़म खा जायेगी ! लाखों की तादाद में जनता, भूखी नंगी हो जायेगी !! ताली थाली सीख चुकी है, दिन भर वही बजायेगी ! मांग के खाने राजी होगी, भीख नहीं मिल पायेगी !!