दौर गोपियों का चला है अब इस ज़माने में , नज़र आती है शहर के सभी मयखाने में ! मनचले होते थे लड़के थे वो एक दिन, अब तो गोपियाँ ही आगे है लड़को को रिझाने में!! दिल जब भर जाती है एक से तो दूसरे खोज लेते हैं , ये सलीका अपने सहेलियों से रोज़-रोज़ लेते हैं ! लड़के भी इनके हुस्न के जाल में गिर ही जाते हैं, गोपियाँ तो है ही आगे लड़को को फ़साने में !! चुस लेती है जिस्म से खून की एक- एक बून्द , और फिर लग जाती है उन्हें सताने में ! अब हमें तुमसे प्यार नहीं तुम दूसरा खोज लो , हमें तो मिल जायेंगे हजारों इस ज़माने में !! टूट जाने के बाद हम घूमते हैं अकेले , दोस्त पकड़ के ले जाते हैं दवाखाने में ! दौर गोपियों का चला है अब इस ज़माने में , नज़र आती है शहर के सभी मयख़ाने में !! :- संतोष 'साग़र' नज़र आती है शहर के सभी मयखाने में... Nojoto Help 🤝