फ़रेबियत की बस्ती सुना था फ़रेबियत की बस्ती दूर दराज़ों में बसा करती है जानते न थे ये बस्ती अपनों के दिलों में भी बसा करती हैं खेल जाते हैं अपने ही फ़रेबियत का खेल यहाँ कब कौन सा रिश्ता आपका फायदा उठा कर विश्वास घात का तोहफा दे जाये,जब आप सच जानते हो और आपका अपना साम दाम दंड भेद की नीति से आपके अटूट विश्वास की धज्जियाँ उड़ा कर अपने फ़रेब से आपको तकलीफ दे जाते है, भूल जाते है इंसान कि ईश्वर सब देखता है, सबका हिसाब इसी जन्म में चुकता है, जाग जा ऐ इंसान कर इतना फ़रेब कि एक दिन ऐसा आये कि तू भी इसी फ़रेब का शिकार किसी सामने वाले इंसान से हो जाये, रख इंसानियत बरकरार अपनी ऐ इंसा तेरी इंसानियत ही तुझसे नाराज हो जाये। जरूरी नहीं फ़रेबियत का खेल इश्क मोहब्बत में ही खेला जाता हो।कभी कभी ये खेल अपने रिश्ते ही ये कसर पूरी कर जाते है। कलयुग का दौर है पर जीवन का कटु सत्य है न कोई मित्र किसी का न अपने होते सगे। लिखावट में अच्छी लगती है बाते मगर जीवन की हकीकत लिखावट के विपरीत होती है। जाग जा इंसा न रख किसी से बैर इतना कि जब तू होये फ़रेबियत का शिकार तो कोई तेरे सहयोग में न खड़ा हो। 🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹