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सब हैं अपनी मानसिक संकीर्णता से जकड़े हुए जो खून

सब हैं अपनी मानसिक संकीर्णता से जकड़े हुए 
जो खून नवजीवन को है सींचता उसे ही दूषित समझते।
दुनिया चाहे पहुँच गई है चाँद पर
ये अपने खुद के बनाए बेफिज़ूल नियमों से ही नहीं उबरते।  मासिक धर्म  - एक सच 

मासिक धर्म चक्र प्रजनन चक्र का प्राकृतिक हिस्सा है, जिसमें गर्भाशय से रक्त योनि से निकलता है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो आम तौर पर 11 से 14 वर्ष की आयु के लड़कियों के बीच शुरू होती है और उनमें से युवावस्था की शुरुआत के संकेतों में से एक है। मासिक धर्म में से गुजर रही महिलाओं और लड़कियों को हमारे समाज के ठेकेदार आस-पास के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के कई पहलुओं से बाहर कर देते हैं। जब कि यह वह समय होता है जिससे उन्हें ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। 

मासिक धर्म को आज भी बहुत गलत दृष्टि से देखते और समझते हैं लोग।  एक शारीरिक प्रक्रिया को धार्मिक रूप दे दिया है सबने। मानते हैं ये कि जिसे मासिक धर्म हो रहा है वो दूषित हो गया है।  उसे धार्मिक स्थलों में जाने की इज़ाज़त नहीं होती है। और तो और कई जगहों में तो उन्हें रसोई में भी जाने की मनाही होती है।  वो भोजन भी नहीं पका सकतीं। पूजा वो नहीं कर सकती। यहाँ तक कि उनका बिस्तर अलग कर दिया जाता है। घर के किसी भी पुरुष से इसके बारे में बात करने की सख्त हिदायत महिलाओं को दी जाती है। 
मासिक धर्म और उससे जुड़ी बातों को लेकर समाज का रवैया हमेशा से रूढ़िवाद रहा है जिससे महिलाओं के जीवन की एक सामान्य और स्वाभाविक प्रक्रिया शर्म और लज्जा का विषय बनकर रह गई है। हमारी मासिक धर्म को लेकर सदियों से चली आ रही चुप्पी को तोड़ना बहुत ज़रूरी है। 
इससे समाज के विचार बदलेंगे और अस्वीकृति के बजाय इसे आत्मविश्वास और साहस के रूप में देखा जाएगा।
सब हैं अपनी मानसिक संकीर्णता से जकड़े हुए 
जो खून नवजीवन को है सींचता उसे ही दूषित समझते।
दुनिया चाहे पहुँच गई है चाँद पर
ये अपने खुद के बनाए बेफिज़ूल नियमों से ही नहीं उबरते।  मासिक धर्म  - एक सच 

मासिक धर्म चक्र प्रजनन चक्र का प्राकृतिक हिस्सा है, जिसमें गर्भाशय से रक्त योनि से निकलता है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो आम तौर पर 11 से 14 वर्ष की आयु के लड़कियों के बीच शुरू होती है और उनमें से युवावस्था की शुरुआत के संकेतों में से एक है। मासिक धर्म में से गुजर रही महिलाओं और लड़कियों को हमारे समाज के ठेकेदार आस-पास के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के कई पहलुओं से बाहर कर देते हैं। जब कि यह वह समय होता है जिससे उन्हें ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। 

मासिक धर्म को आज भी बहुत गलत दृष्टि से देखते और समझते हैं लोग।  एक शारीरिक प्रक्रिया को धार्मिक रूप दे दिया है सबने। मानते हैं ये कि जिसे मासिक धर्म हो रहा है वो दूषित हो गया है।  उसे धार्मिक स्थलों में जाने की इज़ाज़त नहीं होती है। और तो और कई जगहों में तो उन्हें रसोई में भी जाने की मनाही होती है।  वो भोजन भी नहीं पका सकतीं। पूजा वो नहीं कर सकती। यहाँ तक कि उनका बिस्तर अलग कर दिया जाता है। घर के किसी भी पुरुष से इसके बारे में बात करने की सख्त हिदायत महिलाओं को दी जाती है। 
मासिक धर्म और उससे जुड़ी बातों को लेकर समाज का रवैया हमेशा से रूढ़िवाद रहा है जिससे महिलाओं के जीवन की एक सामान्य और स्वाभाविक प्रक्रिया शर्म और लज्जा का विषय बनकर रह गई है। हमारी मासिक धर्म को लेकर सदियों से चली आ रही चुप्पी को तोड़ना बहुत ज़रूरी है। 
इससे समाज के विचार बदलेंगे और अस्वीकृति के बजाय इसे आत्मविश्वास और साहस के रूप में देखा जाएगा।
poonamsuyal2290

Poonam Suyal

Bronze Star
Growing Creator