बन गई है ज़िन्दगी खिलौना सब की नज़रों में, कद्र नही बची अब खुद की अपनी ही नज़रों में, कीमत लगा दी हमारी बाज़ार में हमारे ही अपने ने, कि बस नुमाइश भर रह गए दुनिया की नज़रों में। इक मुस्कुराहट ही तो माँगी थी बस जहाँ में हमने, क्यों यों कौड़ियों के भाव ही बिकवाया हमें तुमने, सदियों से बस बाज़ार का ही रास्ता दिखाया तुमने, क्यों बस यों ज़रूरत का ही सामान समझा तुमने। मेरे एहसासों से खेलते खेलते थक गए अब तुम, जो यों सजावट का सामान ही मुझे बनाया तुमने, अरमानों के जहाँ से अगर मेरे यों खेलना ही था, तो अरमान का अाशियाँ बसाया ही क्यों तुमने। अगर अपना बना कर बस यों ही छोड़ना ही था, अपनेपन का एहसास करा अपनाया ही क्यों तुमने, ज़िन्दगी अग़र ज़िन्दगी के लिए ही ज़रूरी न थी, तो मुझ को अपनी ज़िन्दगी बनाया ही क्यों तुमने। बन गई. है ज़िन्दगी खिलौना सब की नज़रों में, कद्र नही बची अब खुद की अपनी ही नज़रों में, कीमत लगा दी हमारी बाज़ार में हमारे ही अपने ने, कि बस नुमाइश भर रह गए दुनिया की नज़रों में। बन गई है ज़िन्दगी खिलौना सब की नज़रों में, कद्र नही बची अब खुद की अपनी ही नज़रों में, कीमत लगा दी हमारी बाज़ार में हमारे ही अपने ने, कि बस नुमाइश भर रह गए दुनिया की नज़रों में। इक मुस्कुराहट ही तो माँगी थी बस जहाँ में हमने, क्यों यों कौड़ियों के भाव ही बिकवाया हमें तुमने, सदियों से बस बाज़ार का ही रास्ता दिखाया तुमने,