चिड़चिड़ा सा रहता मन जैसे लगी हो तन में आग! चूर-चूर है दर्द से बदन हर अंगों पर जैसे पड़ी हो आँच! सहते सहते पीड़ा, रो जाती हूँ, फ़िर भी करती हर एक काम! कष्ट है तन में बताऊँ कैसे, एकपल को भी नहीं मिलता आराम! इतना सहती स्त्रियां फ़िर भी कमज़ोर कहलाती है! जीवनदान देने वाली,पुरूषों के आगे झुक जाती है! कैसा है ये समाज, औरतों का उड़ाता है मज़ाक! उस पर लगाता है ना जाने कितने घटिया इल्ज़ाम! वाह रे दुनियाँ, जिसे कभी देखा नहीं उसके आगे शीश झुकाता है.. मंदिर मस्जिद जाकर अपने पापों का हिसाब चुकाता है! जन्मदात्री है जो उसी पर हाँथ उठा मर्दानगी दिखाता है! एक औरत के लिए सजाकर सेज, खुदको पति बताता है! औरत तो गर्व की बात है, पिता बनाकर समाज में दिलाती सम्मान है हर साल आज़ादी का जश्न मनाते सोच आज भी क़ैद है समझने की कोशिश करे हर इंसान माहवारी.. अभिशाप नहीं अभिमान है! Open for Collab 🔓 विषय👉 माहवारी..अभिशाप नहीं स्त्री होने का अभिमान है.. कृपया पोस्ट को हाईलाइट जरूर करें।😊😊 🌸Collab करने से पहले कृपया पिन पोस्ट अवश्य पढ लें😊 🌸रचना न्यूनतम 8 पंक्तियों में अवश्य होनी चाहिए।