।।श्री हरिः।।
40 - बतंगा
'यह तो बतंगा है।' कन्हाई ने कहा और सखाओं की ओर दौड़ गया।
नन्हें से नन्द-नन्दन को नाम रखना बड़ा अच्छा आता है। यह गायों, वृषभों, बछड़े-बछड़ियों का, कपियों का, श्वानों का, पक्षियों का, कौओं तक का बडे प्यार से नामकरण करता है, लेकिन कन्हाई अभी है ही कितना बड़ा कि इतने सारे नामों को स्मरण रख सके। कल जिसका नाम इसने उज्जवल रखा, आज उसी को सुबोध कहने लगेगा। अटपटे नाम तो गोपियों के - अपने को खिझाने वाली गोपियों के रखता है - नित्य नये नाम। अब आज इस गोपी का नाम इसने बतंगा रख दिया।
किसी के घर जाकर सब मित्रों को लेकर उसके दूध, दधि, नवनीत को सार्थक काृर आओ, उसके सब भाण्ड फोड़ आओ तो वह खीझेगी नहीं? यह खीझकर व्रजेश्वरी के समीप उलाहना देने आयी तो अपराध क्या किया इसने?