रोटी आदमी से जो भी कराये वो कम, कोरोना ने उसके भी रास्ते किए बन्द। बेचारे मजदूर पैदल ही लौटरहे थे घर, पटरियों पर चल- चल के थक के हो गए थे चूर। पटरियों पर ही हो गए सोने को मजबूर, एक आँधी आयी, उन्हें ले गयी बेदर्द दुनिया से दूर। घर परिवार के सारे सपने कर गयी चकनाचूर। जिस रोटी ने ये सब कराया वही पड़ी थी कुछ दूर। ज़िन्दगी की लड़ाई हार गए मजबूर मजदूर, गरीबों के साथ ही ऐसा क्यों होता है हूजूर? #औरंगाबाद में रेल पटरी पर मजदूरों की दर्दनाक मृत्यु #