"मज़लूम साइकिल" प्रकृति ने जब इंसान को बनाया तब उसने किसी के माथे पे या उसके नितंबों पे नहीं लिखा कि आप किस जाति के हो पर इंसान इतना जात मे बंटे है कि खुद को तो इस मानसिकता मे जकडे रखा , साथ मे वाहनों को भी जात दे दी । कोई सफेद गाडी ब्राह्मण है,कोई काली मोटरसाइकिल राजपूत..कोई लाल चमचमाता स्कूटर गुज्जर है ... पूरा लेख कैप्शन में पढें ... जाति कोई गर्व करने की चीज नहीं... खासकर एसे देश मे जहाँ जातिवाद जैसा घंभीर कैंसर हमारे बीच है,खुद को स्पेशल समझना बंद किजिए..।। प्रकृति ने जब इंसान को बनाया तब उसने किसी के माथे पे या उसके नितंबों पे नहीं लिखा कि आप किस जाति के हो पर इंसान इतना जात मे बंटे है कि खुद को तो इस मानसिकता मे जकडे रखा , साथ मे वाहनों को भी जात दे दी । कोई सफेद गाडी ब्राह्मण है,कोई काली मोटरसाइकिल राजपूत..कोई लाल चमचमाता स्कूटर गुज्जर है , अब पूरे शहर मे यह वाहन यह कहते हुए गुजरते है कि जानते नहीं हम कौन है? हमारी जात देखो और रास्ता दो क्योंकि हमारे अंदर जो पैट्रोल है उसका रंग ढंग ही कुछ अलग है,वो तुम जैसे राहगिरों के लिए नहीं है । यह extrapremium तेल है जो मोटरसाइकिल,स्कूटर और गाडी के इंजन की पाइपों मे एसा समाया है कि हर जातिय वाहन को बस यह लगता है कि मेरी जात कुछ खास है,मेरे extrapremium तेल का रंग कुछ अलग है पर सच तो यह की आम तेल का रंग भी extrapremium तेल जैसा है । एसा वैसा तेल नहीं ExtraPremium तेल है ,यह तेल 20वी शताब्दी मे किसी रणभूमी की जमीन फाड के निकला था, लेकिन इस extrapremium तेल को कहाँ मालूम था कि हर तेल जमीन फाड के निकलता है, उसे ना जाने क्यों लगता है कि उसने कोई एहसान किया उन सीमेंट के रास्ते पर ,जैसे वो ना होते तो शायद यह रास्ते बन ही ना पाते , उन वाहनों को यह एहसास नहीं कि इन रास्तों को पैदल चलने वालों ने बनाया है । मज़लूम बेचारी गरीब साइकल ही रह गई थी अब जिसे किसी ने जाति नहीं दी । शायद गरिबों की कोई जाति नहीं होती या इतनी खुशकिस्मत है कि कोई जाति नहीं मिली या शायद दलित है जो गर्व से जाति नहीं लिख सकती खुद पर । उसपे तो ना कोई खास extrapremium वाला जाट,पंडत,गुज्जर,राजपूत,ठाकुर कोई जाति देकर तैयार नहीं .. ऊपर से अक्सर किसी संकली रोड़ पर उस मजलूम साइकिल को होर्न बजा बजा कर दबाया जाता और अक्सर रास्ता खाली करने के लिए मजबूर किया जाता । यह तो आम शहरों के आम रास्तों की बात है , बडे हाइवे पर तो निकलने की इजाजत ही नहीं है उस मज़लूम साइकल को,नहीं तो कोई जात के तबके से सजी गाड़ी उस साइकिल को रौंदते हुए निकल जाएगी और गवाही होगी कि सफेद रंग की गाडी जिसके पिछले काले शीशे पे फलानी जात लिखी थी उसने एक मज़लूम साइकिल को कुचल दिया । यह साइकिल मे वो खास तरह का extrapremium तेल नहीं डलता, शायद इसलिए उसे यह अहम नहीं आया ना उसे कभी यह महसूस हुआ कि वो भी किसी मोटरसाइकिल की तरह अपने माथे पर कोई जाति लिख दे । इस साइकिल की मज़लूमियत कि हद तो यह है कि जिस साइकिल ने पहली दफा इंसान को पहिए पे दिशा देना सिखाया,उसे संतुलन दिया, आज वही मज़लूम साइकिल पिछडी रह गई । सब उससे आगे निकल गए और उसकी धिमी घंटी किसी को सुनाई ही नहीं दी । एसा नहीं था कि सरकारों ने इस अन्याय के खिलाफ कुछ काम नहीं किया । हर चुनावी मौसम मे यह एलान तो हो ही जाता था कि इस बार जीते तो साइकलों के लिए आरक्षित साइकिल लेन बनाई जाएगी जिसमें साइकिल बिना किसी भीड़, बिना किसी और वाहनों के वहाँ से गुजरेगी । यह खास सुविधा जब मिलेगी मज़लूम साइकलों को तो उन वाहनों का क्या होगा जो यह सोचने लगेंगे कि अगर इतनी साइकिल लेन बन गई तो वो कैसे उस शानदार रोड़ से गुजरेंगे जो पतली होती रहेगी हर चुनाव आते आते क्योंकि हर वादे में नई साइकिल लेन बनेगी। यह भी सवाल उठने लगेगा कि फिर मोटरसाइकिल के लिए मोटरसाइकिल लेन क्यों नहीं? गाड़ी के लिए गाड़ी लेन क्यों नहीं... इससे अच्छा तरिका था कि रोड़ की स्पीड़ लिमिट तय कर दी जाती जिससे गति पर काबू लगाया जा सकता ताकि साइकिल भी कभी ना कभी कुछ दूर चलकर,कुछ मेहनत से, रास्ते के किसी लाल बत्ती पर किसी गाड़ी, किसी स्कूटर, किसी मोटरसाइकिल के बराबर आ सकती । जिनके वाहनों पे जाति से जुडी शेर ओ शायरी, या जाति भी लिखी है मेरे हिसाब से वो कानूनी जुर्म से तो बेकसूर मान लिए जाएंगे, पर एक नैतिक सामाजिक माप दंडों में मैं उन्हें दोषी मानुँगा । जागिए यह बकवास सोच से ऊपर उठिए... - RatNam