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फिक्र में हूं बेफिक्र नही, है सब्र मेरा बेसब्र नही

फिक्र में हूं बेफिक्र नही, है सब्र मेरा बेसब्र नही
अब्र बनकर टुटूंगा फिर जिक्र मेरा हर कहीं कहीं 
उलझ उलझ के सुलझा हूं, 
अब उलझनो का कोई बोझ नही
अर्क में हूं अंध नहीं, है रौशनी अब हर कहीं कहीं
विप्र हूं तीव्र हूं उम्र का अब कोई डर नही
प्रेम में हूं अब क्रोध नही
कृपा में हूं अब कृपाण नही
चंद्र प्रकाश में लिपटा हूं
सूर्य चक्र सुसोभित हूं
प्रण प्रताप सा वृक्ष हूं
प्रणाम मेरा अब हर कहीं कहीं
फिक्र मैं हूं बेफिक्र नही, है सब्र मेरा बेसब्र नही


 मेरे अंतर्मन से उपजी एक कविता, इसे ज़रूर पढ़े। अच्छी लगे तो अपने विचार मुझे दें 🙏

【अब्र = बदल, अर्क = रौशनी, विप्र = धार्मिक】

फिक्र मैं हूं बेफिक्र नही, है सब्र मेरा बेसब्र नही
अब्र बनकर टुटूंगा फिर जिक्र मेरा हर कहीं कहीं 
उलझ उलझ के सुलझा हूं, अब उलझनो का कोई बोझ नही
अर्क मैं हूं अंध नही,है रौशनी अब हर कहीं कहीं
फिक्र में हूं बेफिक्र नही, है सब्र मेरा बेसब्र नही
अब्र बनकर टुटूंगा फिर जिक्र मेरा हर कहीं कहीं 
उलझ उलझ के सुलझा हूं, 
अब उलझनो का कोई बोझ नही
अर्क में हूं अंध नहीं, है रौशनी अब हर कहीं कहीं
विप्र हूं तीव्र हूं उम्र का अब कोई डर नही
प्रेम में हूं अब क्रोध नही
कृपा में हूं अब कृपाण नही
चंद्र प्रकाश में लिपटा हूं
सूर्य चक्र सुसोभित हूं
प्रण प्रताप सा वृक्ष हूं
प्रणाम मेरा अब हर कहीं कहीं
फिक्र मैं हूं बेफिक्र नही, है सब्र मेरा बेसब्र नही


 मेरे अंतर्मन से उपजी एक कविता, इसे ज़रूर पढ़े। अच्छी लगे तो अपने विचार मुझे दें 🙏

【अब्र = बदल, अर्क = रौशनी, विप्र = धार्मिक】

फिक्र मैं हूं बेफिक्र नही, है सब्र मेरा बेसब्र नही
अब्र बनकर टुटूंगा फिर जिक्र मेरा हर कहीं कहीं 
उलझ उलझ के सुलझा हूं, अब उलझनो का कोई बोझ नही
अर्क मैं हूं अंध नही,है रौशनी अब हर कहीं कहीं