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मेरी पोटली कहानी का यह चौथा अंश कृपया अनुशीर्षक मे

मेरी पोटली कहानी
का यह चौथा अंश
कृपया अनुशीर्षक में
पढ़ें। सुप्रभात 🙏🏻
कहानी के चतुर्थ अंश को पढ़ें एवं 16 जून तक कहानी का आख़िरी अंश भी लिखने की कोशिश करूंगी।
कहानी के बाकि भाग पढ़ने के लिए #मेरी_पोटली_कहानी पर जाएं।

लोगों के मन में लालच फिर एक बार अपने पैर पसार रहा था। वहीं चोर के घर में खुशियाॅं छाई हुई थी। एक तो चोरी की पोटली ऊपर से पचास सोने के सिक्के, और पंचायत से सम्मान मिलेगा जो अलग। 
नटवरलाल और सीमा ने सोचा क्यों ना हम इस पोटली में से कुछ सिक्के अपने पास रख लें और इस पोटली को किसी के घर में छुपा आए, और पंचों से कहेंगे कि हमें यह पोटली किसी के घर से मिली है। नटवरलाल और सीमा के मन में गहराता लालच और बुढ़िया के मन में अपने मोह और प्रेम का खो जाने का भय दोनों ही कम नहीं है। दोनों ही तरफ डर फैला है। जब नटवरलाल और सीमा ने सोचा कि क्यों ना हम इस पोटली के रुपए अभी ही निकाल लें, इस मंशा से जब उन्होंने पोटली खोली तो, पोटली देखते ही दोनों शर्म से पानी-पानी हो गए, और किसी के जीवन की ऐसी जमापूॅंजी देख हैरान हो गए। उस पोटली को चुरा लेने के बाद से जितना वह संतुष्ट थे, पोटली को खोलकर देखने के बाद उन दोनों के लहू में जैसे अब बस शर्म ही दौड़ रही थी। जीवनभर का लालच कुछ ही क्षणों में अब शर्म और आदर में परिवर्तित हो गया। और अपने पास पैसे रख लेने का लोभ उन्हें अब केवल बचपना ही लगा। 
अब बुढ़िया की पोटली सारी पंचायत के सामने लौटा देने का उन दोनों ने अब मन बना लिया।
रातभर उनकी केवल इस सोच में निकल गई कि आख़िर हमारे हाथों यह कैसे हो गया? उन्होंने मन ही मन बुढ़िया से हजारों बार माफी माॅंग ली। अब उन्हें पंचायत फिर से बैठने का ही इंतज़ार था।
मेरी पोटली कहानी
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कहानी के चतुर्थ अंश को पढ़ें एवं 16 जून तक कहानी का आख़िरी अंश भी लिखने की कोशिश करूंगी।
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लोगों के मन में लालच फिर एक बार अपने पैर पसार रहा था। वहीं चोर के घर में खुशियाॅं छाई हुई थी। एक तो चोरी की पोटली ऊपर से पचास सोने के सिक्के, और पंचायत से सम्मान मिलेगा जो अलग। 
नटवरलाल और सीमा ने सोचा क्यों ना हम इस पोटली में से कुछ सिक्के अपने पास रख लें और इस पोटली को किसी के घर में छुपा आए, और पंचों से कहेंगे कि हमें यह पोटली किसी के घर से मिली है। नटवरलाल और सीमा के मन में गहराता लालच और बुढ़िया के मन में अपने मोह और प्रेम का खो जाने का भय दोनों ही कम नहीं है। दोनों ही तरफ डर फैला है। जब नटवरलाल और सीमा ने सोचा कि क्यों ना हम इस पोटली के रुपए अभी ही निकाल लें, इस मंशा से जब उन्होंने पोटली खोली तो, पोटली देखते ही दोनों शर्म से पानी-पानी हो गए, और किसी के जीवन की ऐसी जमापूॅंजी देख हैरान हो गए। उस पोटली को चुरा लेने के बाद से जितना वह संतुष्ट थे, पोटली को खोलकर देखने के बाद उन दोनों के लहू में जैसे अब बस शर्म ही दौड़ रही थी। जीवनभर का लालच कुछ ही क्षणों में अब शर्म और आदर में परिवर्तित हो गया। और अपने पास पैसे रख लेने का लोभ उन्हें अब केवल बचपना ही लगा। 
अब बुढ़िया की पोटली सारी पंचायत के सामने लौटा देने का उन दोनों ने अब मन बना लिया।
रातभर उनकी केवल इस सोच में निकल गई कि आख़िर हमारे हाथों यह कैसे हो गया? उन्होंने मन ही मन बुढ़िया से हजारों बार माफी माॅंग ली। अब उन्हें पंचायत फिर से बैठने का ही इंतज़ार था।