ये कैसा गर्मी का मौसम है भाई, पसीने से हैं तरबतर लू के थपेड़ों के साथ-साथ, मच्छरों की वज़ह से भी जान पर बन आई उनको भी दावत का, सुनहरी मौका मिलता है यही खून चूसने से पहले, कानों में गीत भी गुनगुनाते हैं सभी होते ही शाम, सारे भिनभिनाने लगते हैं आस - पास उनको भगाने के सभी उपाय, हो जाते हैं बेकार अपने वजन ज़्यादा होने का, हमें आज फ़ायदा नज़र आया उड़ा कर ले जाना चाहते थे हमें मच्छर, पर कोई ना हमें उठा पाया ये कैसा गर्मी का मौसम है भाई, पसीने से हैं तरबतर लू के थपेड़ों के साथ-साथ, मच्छरों की वज़ह से भी जान पर बन आई उनको भी दावत का, सुनहरी मौका मिलता है यही खून चूसने से पहले,