आप सभी को प्रखर कुशवाहा के नमस्कार! 🙏 "कहमुक़री" लेखन ज़नाब अमीर ख़ुसरो साहब की देन है, जिसे उन्होंने अपने जीवन काल (१२५३-१३२५) के मध्य क़लम बद्ध किया था, उनके बाद तो यह विधा तमाम कवियों-कवयित्रियों की पसन्द रही। सबने अपने-अपने भावों को कहमुक़री का रूप दिया। पेश है मेरी बानगी... उम्मीद है, जरूर पसंद आएगी।☺ बहुत बहुत धन्यवाद...🙏 अधोलिखित भाग पढ़ें। 🙏 👇 "कहमुक़री" कभी आँख से आँख मिलाता, कभी आड़ में छुप-छुप जाता, संग रखे यारों का फंदा, का सखि साजन? ना सखि चंदा। मुझ जैसा ही दिखने लगता,