बूढ़ी आंखे , झुलसे चेहरे हां अब नजर नही आते नजर नही आते है अब वो ईंटो और खप्पड़ों से बने घर जो मिट्टी से जुड़े थे फिर भी मजबूत थे लेकिन अब सब टूटा- टूटा नजर आता है वक़्त बिखर सा गया परिवार के नाम पर अब परिवार कहाँ नजर आता है बड़ी बड़ी इमारतों में रहने लगे है हम दो और हमारे दो को ही परिवार बस अब कहने लगे है जिनके साथ खेला करते थे अब वो दुश्मन बने दिखावटीपन इनका गहना बना अब खुद को एक दूसरे से ऊंचा दिखाना पेशा रहा जिसने इस काबिल बनाया की दो रोटी पर खुद को पाल सके अब वो बूढ़े माँ बाप बृद्धा आश्रम में रहने लगे है बूढ़ी आंखे , झुलसे चेहरे हां अब नजर नही आते नजर नही आते है अब वो ईंटो और खप्पड़ों से बने घर जो मिट्टी से जुड़े थे फिर भी मजबूत थे लेकिन अब सब टूटा- टूटा नजर आता है वक़्त बिखर सा गया परिवार के नाम पर