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"उलझनें जब बड़ जाती है मन की, रिश्तों से हम बंधे

"उलझनें जब बड़ जाती है मन की, रिश्तों से हम 
बंधे होते है, राह कोई भी नजर नहीं आता
विचारों में भटके हम होते है, दिल की सुने या दिमाग
की, कोई नहीं बतलाता ऐसे हाल में एक सच्चा रब
ही है जो हमें राह दिखाता "

©पथिक
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