मेरे कमरे को शिकायत रहती है तू अकेला क्यू रेहता हैं अनजान सा गुमशुदा सा तन्हा क्यू रेहता हैं अब क्या बताऊ उससे तन्हाई का अलग़ ही फ़िज़ा हैं खुद से प्यार करने का अलग़ ही मज़ा हैं || अकेलेपन में मैं खुद को ढूंढता हू कभी खुद से मिलता हू कभी इश्क़ की इबादत करता हू कभी दोस्तों संग बिताये पहलू को कागज में उकेर देता हू किसी हसीन सी मुलाक़ात को याद कर ख़ुश रहलेता हू यादगार हर लम्हे की एहतियात करता हू अब खुद से इश्क़ करता हू इसी से अकेला रेहता हू |||