बुद्ध एक छिछली नदी हैं जो तुम्हें गहरे में उतारते हैं पर तुम्हें डूबने नहीं देते... बुद्ध से मैं सबसे पहले मिला कक्षा 7 में जब मैंने पढ़ी कहानी महात्मा बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल...उनका वो कथन " मैं तो ठहर गया, तू कब ठहरेगा" मेरा प्रिय डायलाग हो गया जैसे आजकल सलमान का "स्वागत नहीं करोगे हमारा" या अक्षय कुमार का "जो मज़ा तेरी अकड़ तोड़ने में है, वो तेरी हड्डियां तोड़ने में नहीं"...उस समय तो बुद्ध के इस कथन का मैं इतना ही मतलब समझा था कि वो एक साहसी नायक की भाँति किसी से डरते नहीं हैं इसलिए उन्होंने अंगुलिमाल से ऐसा कहा...बाद में इसका असली मतलब समझ आया... धीरे धीरे उन्हें इतिहास की किताबों में और अन्य साहित्यों में कभी अजातशत्रु के साथ तो कभी राजा बिम्बिसार के साथ और फिर सम्राट अशोक के साथ और उनके पुत्र पुत्री के साथ पढ़ते पढ़ते और थोड़ा ओशो के कथनों में उनके उल्लेखों को सुन सुन कर मैं उनका ही होता चला गया...अब ऐसा लगता है जैसे वो एक Dennim की Blue जीन्स और White Adidas की टी~शर्ट के साथ Asics के जूते पहनकर और आँखों पर काला धूप का चश्मा चढ़ाये मेरे साथ मेट्रो में साथ घूमते हैं...अब वो बालों का जूड़ा नहीं बनाते बल्कि एक छोटी Pony Tail रख ली है...तालकटोरा स्टेडियम के बाहर साथ में नारियल पानी पीते हैं... अब चूंकि इतना घनिष्ठ संबंध हो गया है तो कोई उनका विरोध करता है तो वो तो मुस्कुराते रहते हैं पर मैं थोड़ा विचलित हो जाता हूँ... मुझे कभी कभी ऐसा लगता है कि वो दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में हैं और मैं उनका वकील हूँ...और उनके ऊपर कुछ आरोप लगाए जा रहे हैं और मैं कोशिशों में लगा हूँ उनको बचाने में...