हां हूं मैं जिस्म बेचती इन भूखे बाजारों में के हां हूं मैं करती सौदा हवस अंगारों में पर तुम जैसी ही पली बड़ी थी एक छोटे से गांव में धमाचौकडी करती थी... मैं...खूब शरारत करती थी मां के आंचल की छावों में (READ CAPTION) हां हूं मैं जिस्म बेचती इन भूखे बाजारों में के हां हूं मैं करती सौदा हवस अंगारों में पर तुम जैसी ही पली बड़ी थी एक छोटे से गांव में धमाचौकडी करती थी... मैं...खूब शरारत करती थी मां के आंचल की छावों में मैं चिरैया नन्ही सी थी... चाह थी गगन में उड़ने की खूब किताबें लाती थी....चाह थी बड़े स्कूल में पड़ने को पर कुछ हुआ यूं कि सपने सारे चुर हुए गिरी चिरैया धरती पर...गिरते ही पंख फिर धुर हुए