मेरे अनकहे ख़्याल क्यों समझती गलत दुनिया मुझे जब नहीं कसूर मेरा, या फ़िर रहता मैं एक अपनी अलग दुनियाँ में जो हूँ। नहीं पता आख़िर क्या गलत या क्या सही है मेरे लिएं, पर करता मैं हमेंशा सिर्फ़ सच्चे दिल के साथ ही जो हूँ। याद़ नहीं रखना चाहता कि कल मैंने क्या किया था, बस जीना मैं चाहता अपने आज़ इस पल में ही जो हूँ। कैसे यकीन दिलाऊँ अब मैं दुनियाँ के मतलबी लोगो को,