रोज़-ए-निकाह मियाँ जाँ मेरी दुल्हन किसकी बनी तमाशा कुछ नहीं हुआ तमाशा मेरी ज़िंदगी बनी वह तड़प रही थी मेरे उन तमाम यादों के कैद में उसकी जुदाई मियाँ मेरे लिए क्या कोई खुशी बनी फिर कोई ज़ुलेख़ा को फिर कोई युसूफ़ न मिला जाँ से आह निकलती है फिर यह कहानी अधूरी बनी उसकी हँसी उसकी माशूक़ाना अदा उसका बाँकपन चाँद की रोशनी उसके रुख़ पे पड़ी तो चाँदनी बनी मुझे फ़क़त मुसलमान मत कहो मियाँ मैंने पढ़ा है गंगा जब जह्नु के कान से निकली तो जाह्नवी बनी मियाँ जी बताते है ‘सुब्रत’ ख़ुश थी वह वलीमे में समझाए तुमको ऐ दिल वो न मेरी थी न मेरी बनी.... ©Anuj Subrat रोज़-ए-निकाह मियाँ जाँ मेरी दुल्हन किसकी बनी......~©अनुज सुब्रत #रोज़__ए_निकाह #जाँ #मियाँ #तमाशा #ज़िंदगी #रोशनी #चाँदनी #अनुज_सुब्रत #MereKhayaal