तुम्हारे आगमन का आनंद ऐसा, जैसे वसुधा पर सूरज की बेटियां हैं पधारी.. और हर आंगन में है प्रकाशित आभामंडित उनकी हास्यज्योति। ठहरी हुई शांत चित्त में सुस्ता रही हो ओस जैसे, चुपचाप दूब पर पड़ी.. वैसा मेरा विश्राम हो तुम। स्वर तुम्हारा फूटता है.. जैसे रंग फूटे कोपलों में। पल्लव - पवन के संग से उभरा हुआ संगीत हो तुम। अनिश्चित कालखंड में जब, कुछ कहीं निश्चित नहीं है.. मेरे हाथों में शाश्वत सहर्ष अंकित तुम हो मेरी हस्तरेखा। स्मृति में बसी हो, बदली में मानो नीर हो। श्वासों की चेतना - सा पवित्र - निर्मल योग हो तुम। आभास जिसका पुलकित कर दे, वह प्रेममय स्पर्श हो तुम। बंद करके नैनपट प्रार्थना में... है जैसे जुड़ जाता हृदय, यूं ही मेरी तुमसे.. है भेंट जैसे आत्मपरिचय! ... तुम्हारे आगमन का आनंद ऐसा, जैसे वसुधा पर सूरज की बेटियां हैं पधारी.. और हर आंगन में है प्रकाशित आभामंडित उनकी हास्यज्योति। ठहरी हुई शांत चित्त में सुस्ता रही हो ओस जैसे,