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करें उदघोष फिर से शास्त्री जी के इन शब्दों का .. उ

करें उदघोष फिर से शास्त्री जी के इन शब्दों का ..
उबाल ज़रूरी है फिर से इन रगों में बहते रक्तो का..
सीमा पर लड़ता जवान,
खेतों में तड़पता किसान,
चाहें दोनों ही थोड़ा थोड़ा जीवनदान,
सियासी चौखानों पर ये सजे ,
आज सिर्फ प्यादों से,
फिर से वज़ीर आये आप सा..
सियासी चालों को बदलने के लिए,
फिर से वज़ीर आये आप सा..
जवान और किसान के हालातों को समझने के लिए,
आये फिर से हरित क्रांति
गाए देश फिर से 1965 सी शौर्य गाथा ...
फिर से वज़ीर आये आप सा .. 2 अक्टूबर 1904 में जन्मे श्री लालबहादुर शास्त्री  9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा।

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद उन्हें उनकी बेदाग़ छवि के कारण प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। 1962 में भारत पहले ही चीन के साथ हुए युद्ध में हार चुका था जिस के मद्देनज़र पाकिस्तान ने भारत को कमज़ोर आँकते हुए 1965 में भारत पर हमला कर दिया लेकिन शास्त्री जी के नेतृत्व में भारत ने न सिर्फ़ यह युद्ध जीता मगर इस साथ साथ विश्व की बड़ी ताक़तों ख़ासतौर से अमरीका को भारत की आत्मनिर्भरता का परिचय दिया। अमरीका ने जब गेहूँ देने से मना किया तो उन्होंने ने कहा देश भूखे मरना पसंद करेगा मगर अपनी स्वायत्तता से समझौता नहीं करेगा। उन्होंने ने भारत में हरित क्रांति की नींव रखी। खाद्यान्न समस्या से निपटने के लिए 1 समय का व्रत रखा और देशवासियों को भी 1 समय का उपवास रखने को कहा जिस से ग़रीबों को भी अन्न मिल सके। 

जय जवान, जय किसान का नारा केवल नारा नहीं था उसे अपने जीवन में चरितार्थ करके दिखाया। 

शास्त्री जी की सादगी देखते बनती थी। अपने रहने की जगह से लेकर मोटर गाड़ी व अन्य सुख सुविधाओं के मामले में वे सरकारी पैसे के दुरुपयोग के सख़्त ख़िलाफ़ थे। विनम्रता और नेतृत्व क्षमता का ऐसा समिश्रण शायद ही कहीं देखने को मिले।
करें उदघोष फिर से शास्त्री जी के इन शब्दों का ..
उबाल ज़रूरी है फिर से इन रगों में बहते रक्तो का..
सीमा पर लड़ता जवान,
खेतों में तड़पता किसान,
चाहें दोनों ही थोड़ा थोड़ा जीवनदान,
सियासी चौखानों पर ये सजे ,
आज सिर्फ प्यादों से,
फिर से वज़ीर आये आप सा..
सियासी चालों को बदलने के लिए,
फिर से वज़ीर आये आप सा..
जवान और किसान के हालातों को समझने के लिए,
आये फिर से हरित क्रांति
गाए देश फिर से 1965 सी शौर्य गाथा ...
फिर से वज़ीर आये आप सा .. 2 अक्टूबर 1904 में जन्मे श्री लालबहादुर शास्त्री  9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा।

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद उन्हें उनकी बेदाग़ छवि के कारण प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। 1962 में भारत पहले ही चीन के साथ हुए युद्ध में हार चुका था जिस के मद्देनज़र पाकिस्तान ने भारत को कमज़ोर आँकते हुए 1965 में भारत पर हमला कर दिया लेकिन शास्त्री जी के नेतृत्व में भारत ने न सिर्फ़ यह युद्ध जीता मगर इस साथ साथ विश्व की बड़ी ताक़तों ख़ासतौर से अमरीका को भारत की आत्मनिर्भरता का परिचय दिया। अमरीका ने जब गेहूँ देने से मना किया तो उन्होंने ने कहा देश भूखे मरना पसंद करेगा मगर अपनी स्वायत्तता से समझौता नहीं करेगा। उन्होंने ने भारत में हरित क्रांति की नींव रखी। खाद्यान्न समस्या से निपटने के लिए 1 समय का व्रत रखा और देशवासियों को भी 1 समय का उपवास रखने को कहा जिस से ग़रीबों को भी अन्न मिल सके। 

जय जवान, जय किसान का नारा केवल नारा नहीं था उसे अपने जीवन में चरितार्थ करके दिखाया। 

शास्त्री जी की सादगी देखते बनती थी। अपने रहने की जगह से लेकर मोटर गाड़ी व अन्य सुख सुविधाओं के मामले में वे सरकारी पैसे के दुरुपयोग के सख़्त ख़िलाफ़ थे। विनम्रता और नेतृत्व क्षमता का ऐसा समिश्रण शायद ही कहीं देखने को मिले।
vibhakatare3699

Vibha Katare

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