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एक बार तुम से प्रेम हुआ था है प्रियतम अब न जाने फ

एक बार तुम से प्रेम हुआ था है प्रियतम 
अब न जाने फिर कब होगा-2
तुम थी मैं था और प्रेम था अब न जाने फिर यह कब होगा.. 

मेरे दिल मे वीणा अब तन्हाई की धुन बजाती हैं
अब न जाने मेरे मन का आधार क्या होगा-2
आँसू है सिसकियां है और तन्हाई अब न जाने यह कब तक होगा... 

जिस से प्रेम किया उसी ने मेरे जीवन मे ऐसे कांटे संज्होये
कि मेरे प्रेम की चाँदनी कृषणपक्स कि मध्यरात्रि मे कहीं खो गयी, उनको जुगुनूओ की झलक मिले जिन्हें उनकी तलाश मुझे तो बस फिर एक बार अंधेरों मे खोई तेरे प्रेम की परछाई मिले

जहाँ तुम थी मैं था और प्रेम था अब न जाने फिर यह कब होगा..

अब रिमझिम के ऐसे गीत मेरे दोनों नयन गाये हाए
जैसे की सावन ही आया हो मेरी इन आँखो मे.. 
मेरा दिल भी भर गया हो ऐसे, जैसे भरता है बहता पानी   कहीं सावन की रातों मे.. 
तेरी यादों का दीप जला फिर कहीं इन लहराती हुई घटाओ मे.. और जल कर चमका हो ऐसे, जैसे बिजलिया चमकती है सावन की घंघोर रातों मे.. 

जहाँ तुम हो मैं हुं और बस बातें हो अब न जाने फिर यह कब होगा

अब मैं फिर तेरे सपनों के सागर मे ऐसे डूबा जैसे बांसुरी डूबी हो खुद के ही रागों मे लेकिन अब जब आँखे खुलेगी
तब न जाने इस दिल का हाल फिर क्या होगा 
यह सोचकर मेरे इंद्रधनुष से सतरंगी मन मे बजी बड़ी ही विकल धुनों की रागिनी लेकिन अब जब साँसे निकलेगी तब न जाने तेरे भी मन का हाल फिर क्या होगा

अब बस प्रेम है मैं हुं तुम हो अब न जाने फिर यह कब होगा

©Bhanu Pratap Singh Rathore
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