पानी से उठा था,फिर पानी में गिर गया एक बुलबुला था ज़िदंगी का,जो हवा में उड़ गया काम नहीं आई,कोई तरकीब भी कभी जिधर ले चली हवाएं,उधर वो उड़ गया पुराने रास्ते भी अभी,खत्म हुए थे कहां नए रास्तों पर जब वो,अजनबी सा मुड़ गया लोग मिलते भी रहे,लोग बिछड़ते भी रहे अकेला ही वो चला था,वो अकेला ही रह गया बहुत ख़ामोश होकर,उसे देख हम रहे थे वो बिखर रहा था मुझमें,उसे समेट हम रहे थे कोशिशें तो बहुत की थीं,पर उसे तोड़ ना सका साज़िशें करके भी ये ज़माना,उसे रोक ना सका आख़िर पहुंच ही गया वो,अपने मुकाम पर भी पानी का वो बुलबुला था,जो फिर पानी में मिल गया... Abhishek Trehan #बुलबुला #पानी #जिंदगी_का_सफर #yqquotes #hindipoetry #hindishayari