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ये द्वंद है दोस्ती और इश्क के बीच का,जो चल रहा होत

ये द्वंद है दोस्ती और इश्क के बीच का,जो चल रहा होता है कहीं जाने अनजाने में
जिसका पता न होता है उन्हें और न उन्हें,जिसकी खबर से बेखबर ही रहते हैं सभी

वो मचलते हैं फिसलते हैं संभलते भी हैं,लेकिन न चाहकर भी चाहते रहते हैं
दोस्ती है ये तो बखूबी जानते हैं दोनों,लेकिन दोस्ती से आगे का नहीं जानते दोनों

एक वक़्त पर कभी दोस्त ही रहना चाहते थे दोनों,लेकिन कैसे कहें कि दोस्त ही नहीं रहना चाहते थे दोनों
लड़ते हैं झगड़ते हैं शिकायत भी करते हैं लेकिन,न कह पाते है न समझ पाते हैं और न बोल पाते हैं

जो कहना है कहने के लिए शब्द तो रखते हैं,लेकिन कहते कहते कहीं पलट जाते हैं दोनों
जानते दोनों हैं लेकिन अनजान से रहते हैं,कभी कभी तो खामोश ही रह जाते हैं दोनों

हर बात का बेहिसाब ख़याल रखते हैं दोनों,एक दुसरे की फिक्र में अपनी भूल जाते हैं दोनों
रोज़ एक ही बात को कहने के लिए मिलते हैं,लेकिन उसे छोड़कर बाकी बात कर जाते है दोनों

आयने के सामने दोनों हाथ कसकर कहते हैं दोनों,आज तो आज तो आज तो कह कह कर निकलते हैं दोनों
लेकिन फिर वही कहते कहते न कह पाते हैं दोनों,लौटते वक़्त मिसमिसाते पलट पलट कर देखते जाते हैं दोनों

ऐसा हो गया कि अब आयना देखना ही भूल गये हैं दोनों,बिखरे बाल, खुली शर्ट और खुले फीते मैं आ जाते हैं दोनों
ये देखकर एक दुसरे पर ही हंस जाते हैं दोनों लेकिन,जिसके लिए आये थे फिर वही भूल जाते हैं दोनों

एक दिन कुछ ऐसा सोचते हैं दोनों,कि आज लिखकर लाते हैं दोनों
किताबों के बीच में रखकर लाते हैं दोनों,और एक दूसरे की किताब भूल जाते हैं दोनों

©पूर्वार्थ #दोस्ती
#प्रेम
#द्वंद्
ये द्वंद है दोस्ती और इश्क के बीच का,जो चल रहा होता है कहीं जाने अनजाने में
जिसका पता न होता है उन्हें और न उन्हें,जिसकी खबर से बेखबर ही रहते हैं सभी

वो मचलते हैं फिसलते हैं संभलते भी हैं,लेकिन न चाहकर भी चाहते रहते हैं
दोस्ती है ये तो बखूबी जानते हैं दोनों,लेकिन दोस्ती से आगे का नहीं जानते दोनों

एक वक़्त पर कभी दोस्त ही रहना चाहते थे दोनों,लेकिन कैसे कहें कि दोस्त ही नहीं रहना चाहते थे दोनों
लड़ते हैं झगड़ते हैं शिकायत भी करते हैं लेकिन,न कह पाते है न समझ पाते हैं और न बोल पाते हैं

जो कहना है कहने के लिए शब्द तो रखते हैं,लेकिन कहते कहते कहीं पलट जाते हैं दोनों
जानते दोनों हैं लेकिन अनजान से रहते हैं,कभी कभी तो खामोश ही रह जाते हैं दोनों

हर बात का बेहिसाब ख़याल रखते हैं दोनों,एक दुसरे की फिक्र में अपनी भूल जाते हैं दोनों
रोज़ एक ही बात को कहने के लिए मिलते हैं,लेकिन उसे छोड़कर बाकी बात कर जाते है दोनों

आयने के सामने दोनों हाथ कसकर कहते हैं दोनों,आज तो आज तो आज तो कह कह कर निकलते हैं दोनों
लेकिन फिर वही कहते कहते न कह पाते हैं दोनों,लौटते वक़्त मिसमिसाते पलट पलट कर देखते जाते हैं दोनों

ऐसा हो गया कि अब आयना देखना ही भूल गये हैं दोनों,बिखरे बाल, खुली शर्ट और खुले फीते मैं आ जाते हैं दोनों
ये देखकर एक दुसरे पर ही हंस जाते हैं दोनों लेकिन,जिसके लिए आये थे फिर वही भूल जाते हैं दोनों

एक दिन कुछ ऐसा सोचते हैं दोनों,कि आज लिखकर लाते हैं दोनों
किताबों के बीच में रखकर लाते हैं दोनों,और एक दूसरे की किताब भूल जाते हैं दोनों

©पूर्वार्थ #दोस्ती
#प्रेम
#द्वंद्