कोई इश्तियाक़ बाक़ी न रही उनके दीदार-ए हुस्न के बाद महख़ानो में जाना ज़रूरी हो गया उनके जाने के बाद उनके अब्सार सा नशा कहां आब-ए-तल्ख़ में था पर अब और कोई ज़रिया ही क्या था उनके जाने के बाद। #मन_की_तरंग_से