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कल्पना की डोर थामे चल रहा हूं सांस थामे मर चुका हू

कल्पना की डोर थामे चल रहा हूं सांस थामे
मर चुका हूं मैं या फिर से जी उठा हूं कल्पना में।
आंसूओं की बूंदों को भी रोक पाया मैं नहीं
शब्द लाखों बिलखते थे बोल पाया मैं नहीं।
जिस क़दर तन्हाइयों में मैं हूं सिमटा आज भी
कल्पना में हूं मैं जिंदा आज भी हूं राज़ ही। #कल्पना
कल्पना की डोर थामे चल रहा हूं सांस थामे
मर चुका हूं मैं या फिर से जी उठा हूं कल्पना में।
आंसूओं की बूंदों को भी रोक पाया मैं नहीं
शब्द लाखों बिलखते थे बोल पाया मैं नहीं।
जिस क़दर तन्हाइयों में मैं हूं सिमटा आज भी
कल्पना में हूं मैं जिंदा आज भी हूं राज़ ही। #कल्पना