#OpenPoetry मुझे तो पता ही नहीं चला , मैं कितना बदल गया। अभी तो उनसे आंख लड़ी , और ये बंदा बिगड़ गया। हां मैं बिगड़ गया। अब उनकी तारीफ में..... तेरी बातों का ये कैसा , जादू सा मुझ पर चल गया। तेरी जुल्फों के साए मैं बादल , मैं उनमें सारा भीग गया। हां मैं भीग गया। तेरे होठों की उस गुलाबी हंसी पर , मेरा दिल ये पागल मचल गया। मैं अपना दिल तुझको दे कर , और तेरा दिल में लेकर निकल गया । हां मैं निकल गया। याद करो उस दिन की बारिश , जिसमें तेरे जिस्म का कतरा कतरा भीग गया। उन भीगी भीगी पलकों पर , हाय! करके दिल मेरा अटक गया। हां मैं अटक गया। उस बारिश के मौसम में भी , मेरे दिल में शोला धधक गया। कैसे बयां करूं अल्फाज़ में अपने , तुझे उस दिन देख के पागल हो गया। हां मैं पागल हो गया। अब आगे नहीं लिखा जाता , क्योंकि शराफत की हद से आगे निकल गया । गर पढ़ लिया घर वालों ने तो बोलेंगे , की बंदा ये हाथ से निकल गया। हां बंदा ये हाथ से निकल गया। सर्वाधिकार सुरक्षित©®✍ #OpenPoetry राधे 😊