एक और सुनहरी शाम। (Story in caption) 2/11/2022 पता नहीं क्यों बहुत डर लग रहा था। क्यों आ रही है यह तारीख? नहीं आनी चाहिए। पर क्यों नहीं आनी चाहिए? जन्मदिन ही तो है, हर साल आता है, और एक पल में चला भी जाता है। ये बेचैनी क्यों हो रही है यार? कुछ ऐसे ही खयाल अंशिका के मन में उसके जन्मदिन से 1 दिन पहले बेवजह ही आए जा रहे थे। खैर दिन कैसे तैसे बीता और आखिर में वह दिन आ ही गया। सुबह का वक्त, पहले दिन से थोड़ा बेहतर लग रहा था। जैसे ही फोन देखा तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नही रहा। उसके सबसे ख़ास दोस्त की इतनी सारी शुभकानाएं देख वो बस बहुत देर तक मुस्कुरा रही थी और फिर उस पिछले दिन की बेचैनी को पल भर में भूल गई। कुछ देर बाद,उसके वही ख़ास दोस्त का मेसेज आया। आंनद : I was thinking that we should meet today.