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वक्त से है जंग मेरी आज कल नींदे हो रही पतंग मेरी म

वक्त से है जंग मेरी आज कल
नींदे हो रही पतंग मेरी मुसलसल
पूछ बैठा भटकती परछाइयों से
मंज़िल होगी कब मेरी मुकम्मल

©रोहित 'हीरू'
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