जो कुछ समझा जान मैं पाया मैं तुमको अर्पण करता हूँ। जीवन रूपी समर शेष है मैं आत्मसमर्पण करता हूँ। कब चाहत थी मेरी ये के तेरी बाँहों के हार मिले। मैंने फ़क़त ये चाहा था के उम्र तलक तेरा प्यार मिले। तेरी आँखों में डूब सकुँ मुझको बस मझधार मिले। जीवन की सब उलझी राहें ज़ुल्फ़ों सा तेरी सुलझ जाये। अपना हर ग़म भूल मैं जाऊँ तेरा ग़म गर मिल जाए। रूह में कुछ तूँ यूँ बस जाये के साँसों को क़रार मिले। खोयी हुई दिल की धड़कन को फिर से वही रफ़्तार मिले। ख़्वाहिशें मेरी जो हो हमदम बस तूँ ही मुझे हर बार मिले। हाँ तूँ ही मुझे हर बार मिले।।। - क्रांति #आत्मसमर्पण