कलम भी बिकती है।। इतिहास गवाही देता है, यहां कलम भी बिकती है, बन दरबारी राजाओं के, सत्ता पर जा टिकती है। इतिहास के पन्ने पलट के देखो, सरेआम गवाही देते हैं। कर इतिहास वस्त्र विहीन, सत्त्ता से वाह वाही लेते हैं। कौन रहा निर्भीक यहां, किसने सच का दामन थामा था। एक पृष्ठ की उसकी कहानी, बना याचक वो सुदामा था। थे मुट्ठी भर दिनकर यहां, सत्ता को ललकारा था। संख्या थी अनगिन उनकी, सच से किया किनारा था। सरस्वती धूल फांक रही, लक्ष्मी का राज्याभिषेक हुआ। ज्ञान बना दरबारी बैठा, चापलूस सृजक प्रत्येक हुआ। हठी रहे कुछ लोग यहां, जो अलख जगाने निकले थे। सुन उनकी आवाज़ आर्द्र, कब सत्ता के मन पिघले थे। जब तक हवा में वेग न हो, कब दवानल धधकता है। जब हुंकार हुआ शब्दों में, ये बन तलवार चमकता है। क्यूँ आज रहे मूक बधिर, आओ मिल हम हुंकार करें। सुप्त रही जो शिथिल आत्मा, आ मिल उनका पुकार करें। कानों में गिरे ये वज्र बन, आ मिल शब्दों का भार बढ़ाते हैं। दीये की लौ है टिम टिम करती, एक मशाल हम यार जलाते हैं। बुझ जाए वो चूल्हा, सत्ता की रोटी जहां सिंकतीं है। इतिहास गवाही देता है, यहां कलम भी बिकती है, ©रजनीश "स्वछंद" कलम भी बिकती है।। इतिहास गवाही देता है, यहां कलम भी बिकती है, बन दरबारी राजाओं के, सत्ता पर जा टिकती है। इतिहास के पन्ने पलट के देखो, सरेआम गवाही देते हैं। कर इतिहास वस्त्र विहीन,