कुछ बातें हैं......अनकही, कुछ उलझने हैं मन के उस पार कहीं। इस पार सब शांत है......स्थिर है, एक वो किनारा है... जहां अनवरत ज्वार तो कभी भाटा है। कितना अच्छा होता गर शब्दों के भी पांव होते.... खुद चलकर आते और मन के विचारों को गति देकर एक जीवंत शरीर बनाते। सतत चलते रहना प्रकृति है मन की जो रुक कर ठहरे तो नैराश्य भंवर है जो चलते गए लगातार तो जीवन है, सहर है। ©Akarsh Mishra #man #uljhan #अतीतकेपन्ने