अनजाने में हो गई थी आँखों से गुस्ताख़ी, अब दिल चुराने का इल्ज़ाम लिये बैठी है। हो गई ज़िंदगी गुलज़ार उनके आ जाने से, अब धड़कन भी उनका नाम लिये बैठी है। क्या जनवरी-फरवरी, है हर तारीख़ उनकी, अब पल-पल साँसें भी, काम लिये बैठी हैं। तहरीरों में मिलता है, उन्हीं का तो एहसास, अब यह रोज़-रोज़ का पैग़ाम लिये बैठी है। थोड़ा-थोड़ा कर, पूरा ही तो बदल गई 'धुन', अब हो जैसा भी अभी आराम लिये बैठी है। 🎀 Challenge-214 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। आप अपने अनुसार लिख सकते हैं। कोई शब्द सीमा नहीं है।