•| ग़ज़ल |• " आख़िर कैसे " खुद में ही मैं उलझी हूं, ना जाने सुलझाऊं कैसे, अपना हाल - ए - दिल किसी को बतलाऊं कैसे। एक तू ही तो था जिसने हंसना सिखाया था, तेरी ही खातिर इन आंखों को रुलाऊं कैसे। तूने तो एक पल में ही पराया कर दिया, मैं तेरे साथ बीते हुए पल भुलाऊं कैसे। मेरी आंखों में दिखता है अब भी तेरा प्यार, तू ही बता इसे दुनिया से छुपाऊं कैसे। दिल की "महिमा" वो ही जाने, जिसने दिल लगाया है, मेरा तो सब कुछ टूट गया, मैं ये रोग लगाऊं कैसे।। •| ग़ज़ल |• "आख़िर कैसे" खुद में ही मैं उलझी हूं, ना जाने सुलझाऊं कैसे, अपना हाल - ए - दिल किसी को बतलाऊं कैसे। एक तू ही तो था जिसने हंसना सिखाया था, तेरी ही खातिर इन आंखों को रुलाऊं कैसे।