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रक्त की पिपासा लिये, सामनें खड़ा हैवान था, पर वो म

रक्त की पिपासा लिये,
सामनें खड़ा हैवान था,
पर वो मूरख न समझ सका,
सामनें उसके अडिग चट्टान था,

वो सोंचा मारकर उसे,
बुझा देगा वो क्रांति के मशाल को,
पर वो न सोंच सका ,
कि वो अपनीं वीरता की भूचाल से,
गीदड़ो को निकाल बाहर करेगा शेरों की खाल से,

मरकर उसनें क्रांति की ऐसी शम्मा जलाई,
जिसनें ग़ुलामी की बेड़ियाँ निकाल दीं तोड़ के,
ऐ आज़ाद हिन्द में साँस लेनें वाले,
जलाओ दीये आज़ादी के,
पर कभी कोई खुशी मनाना ना,
भगत, राज, सुखदेव की क़ुर्बानीं को भूल के,

रक्त की पिपासा लिये,
सामनें खड़ा हैवान था,
पर वो मूरख न समझ सका,
सामनें उसके अडिग चट्टान था 
#कविमनीष 

 

 #NojotoQuote #कविमनीष
रक्त की पिपासा लिये,
सामनें खड़ा हैवान था,
पर वो मूरख न समझ सका,
सामनें उसके अडिग चट्टान था,

वो सोंचा मारकर उसे,
बुझा देगा वो क्रांति के मशाल को,
पर वो न सोंच सका ,
कि वो अपनीं वीरता की भूचाल से,
गीदड़ो को निकाल बाहर करेगा शेरों की खाल से,

मरकर उसनें क्रांति की ऐसी शम्मा जलाई,
जिसनें ग़ुलामी की बेड़ियाँ निकाल दीं तोड़ के,
ऐ आज़ाद हिन्द में साँस लेनें वाले,
जलाओ दीये आज़ादी के,
पर कभी कोई खुशी मनाना ना,
भगत, राज, सुखदेव की क़ुर्बानीं को भूल के,

रक्त की पिपासा लिये,
सामनें खड़ा हैवान था,
पर वो मूरख न समझ सका,
सामनें उसके अडिग चट्टान था 
#कविमनीष 

 

 #NojotoQuote #कविमनीष