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इन्सानियत का कुछ तो पैमाना होता। हे | Hin

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इन्सानियत का कुछ तो पैमाना होता।
हे राम, इंसान इंसान के खून का प्यासा ना होता ।।

दर्द की अपनी ही एक हद होता।
किसी की आबरू ना लूट पाए, कोई एक ऐसा भी सरहद होता।।

कांप उठता है कलेजा देख कर, ये हादसा, ये मंज़र, ये खूनी खेल।
वो मुर्दा लाशों से भरी ट्रेन, ये जिंदा लाशों से भरा एरोप्लेन ।।

#सुजीतकुमारमिश्राप्रयागराज

©सुजीत कुमार मिश्रा #poetsujeet #yq_मिश्रा 

#WForWriters
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इन्सानियत का कुछ तो पैमाना होता।
हे राम, इंसान इंसान के खून का प्यासा ना होता ।।

दर्द की अपनी ही एक हद होता।
किसी की आबरू ना लूट पाए, कोई एक ऐसा भी सरहद होता।।

कांप उठता है कलेजा देख कर, ये हादसा, ये मंज़र, ये खूनी खेल।
वो मुर्दा लाशों से भरी ट्रेन, ये जिंदा लाशों से भरा एरोप्लेन ।।

#सुजीतकुमारमिश्राप्रयागराज

©सुजीत कुमार मिश्रा #poetsujeet #yq_मिश्रा 

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