हार कर हर बार , सब जीतने ;चलते है हम। उम्मीद जिंदा है, इसी उम्मीद में ; पलते है हम।। अब कहा जाओगे दूर होकर, भी ख्वाहिशो से अपने , छले जाकर अपनो से,, हाथ को मलते है हम।। मुस्कुराकर आजमाया , उन सभी छलियों को मैं। न कभी यु ही झुकाया ,शबनम घिरी कलियों को मैं ।। और पत्थर सा ज़खम , देते रहे मेरे रक़ीब , निहरता फिर भी रहा ,, उन दर्द की गलियो को मैं।। खोजता फिरता रहा सुकून, था मगर घनघोर अंधेरा । ख्वाहिशे मरती मिली , जब झूठो ने था मार्ग घेरा ।। सच तो पहले से पता था ,फिर भी तलाश सच की थी। हो सका जो ना किसी का , कैसे हो जाता वो ही मेरा ।। सर्चिंग ऑफ ट्रुथ इस नॉट अ कप ऑफ टी सुशील