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एक बार रूह आईने के सामने बैठी और रो पड़ी, रोते रोत

एक बार रूह आईने के सामने बैठी और रो पड़ी, 
रोते रोते अपने जिस्म से सवाल करने लगी और कहने लगी.....  

तेरी नज़रों से गिरी तो कंहाँ जाउंगी ?
टूटे फूल की पत्तियों सी बिखर जाउंगी।

तनहाई में अश्क बहते रहेंगे तमाम उम्र, 
मैं खुद में सिमटकर अब क्या पाऊँगी।

कुछ भर्म रहने देता रिश्तों का मुझमे,
अब भर्म भी टूट गया, अब किसे अपनाउंगी।

ठोकर ऐसी लगी दिल में आवाज़ ना हुई,
सोच रहा हूँ अब इस दर्द को साथ ले जाउंगी।

ऐसा तोड़ा है तूने मुझको तिनके तिनके हूँ,
आँखों के आंसू अब किसी को क्या दिखाऊंगी।

तू कभी समझ ना सकेगा दलील मेरे दिल की,
मुजरिम है तू मेरा दिल का , अब दिल को कैसे हंसाऊंगी । 
    
तनहा शायर हूँ - यश






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©Tanha Shayar hu Yash
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