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रेल का सफर मैं वापस मुड़ा फिर ठहर गया देखा वो चल

रेल का सफर 

मैं वापस मुड़ा फिर ठहर गया
देखा वो चली आ रही है 
धुप में तपती बारिश में नहाती 
हर मौसम में हर दिन आती 
आज लगता है ऐसे मुझको 
ये रेल सफर पर बुला रही है। 

मैं वापस मुड़ा फिर ठहर गया
देखा वो चली आ रही है 
हर डिब्बे में जीवन लेकर आती 
मंज़िल तक पहुंचना सबको सिखाती 
जाने कितने बिछडो को मिलती 
 ये रेल क्या क्या समझा रही है।  

मैं वापस मुड़ा फिर ठहर गया
देखा वो चली आ रही है 
धुल भरे तूफानों से निकल आती 
कितने अजनबी से पहचान कराती 
अपनी आवाज़ की धुन में खो जाती 
ये रेल हर गांव हर शहर को मिला रही है

©Tanha Shayar hu Yash
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