आँख बंद करके कर लेता हूँ बचपन को याद। फिर लौट आये वो सुनहरे दिन बस यही है फरियाद ॥ ना किसी चीज की चिंता,ना किसी बात का गम । माँ बाप के दिलाए खिलौने से ही ,खुश हो जाते थे हम॥ कहाँ रह गया वो दिन कहाँ रह गयी वो शाम । जब थक हार कर करते थे माँ की गोद मे आराम॥ खेलने को नही था मोबाईल,खेलते थे छुप्पन छुपाई वो दोस्त दोस्त नही,खेल खेल में हो गये थे भाई ।। माँ के हाथ हमको भाता था । पिता की डाँट बिल्कुल नही सुहाता था ।। स्कुल जाकर मैने जाना , गुरु शिष्य की परिभाषा ये देख मेरे मातपिता को हुई मेरे उज्जवल भविष्य की आशा ।। अच्छे अंक लाने पर माँ को खुश होते देखा है। वो सिर्फ माँ नही , मेरे भाग्य की रेखा है।। भूख जब लगती मुझे,उनको हो जाता एहसास ।। ये और कोई नही कर सकता, मुझे है ये विश्वास ।। किताबो के पन्ने पलटते पलतटे, जीवन गया बदल । कहाँ गये वो दिन,जब हर मुश्किल माँ बाप के सहारे होती थी हल।। उनसे पूछा ,इतना कुछ क्यो करते हो । वो बोले, यही है दुनिया का विधान ।। आज भी तेरे बचपन की शैतानी को याद कर आ जाती मुस्कान ।। इनके प्यार व त्याग को देख, मुझे मिलता है बल। बचपन के भी क्या दिन थे, जब हम हर सवाल कर लेते थे हल ।। #poetrycommunity #poemoftheday #poem #aajkagyan #quotesbychaube