दरख़्त जानते थे हवाएँ जानती थीं वो नाज़नीं हमको अपना मानती थी खताएँ थी मेरी ख़ुदा मैं मानता हूँ ज़ानिब जाँ तमन्ना उसी को जनता हूँ ख़त लिख न पाया लिहाज़ा नाराज़गी थी पर दिल में थी धड़कती उसकी याद ही थी उसी की शान में चमन ये शादबर था मनाए उसको कैसे ये सहर जानती थी लिखा शबनम से शब भर शाख पे बंद कोई चाँद की चाँदनी में पगा गुलकंद कोई खुली रोशनी की पलकें सुरमई औ संदल हँसा गुलाब खुलकर लिहाज़ा उसी डाल पर चमन ये गुल अता कर मैं उसको ख़त किए दूँ नर्म होटों पे उसके दिल की बरक़त किए दूँ तेरा एहसान होगा दिल की वो जान जाए गुलाब गेशुओं में सजा ले रूठी है मान जाए #toyou#sosweet#yqnature#yqlove#yqpeace#yqfriendliness