तेरी इस कदर की, मेरी रूह कांप गई जैसे। कोशिश तो बहुत ही की खुश रहने की, पर चुभती है तेरी ख़ामोशी दिल में। यादे आती है तुम्हारी हमेशा, पर पीछा नहीं छोड़ती ये ख़ामोशी तेरी। ना बोली कुछ भी और, छोड़ दिए दिल पे ख़ामोशी के तीर। क्या बोलू अब मे, ख़ामोशी दे के, एक मोका भी नहीं दिया, मेरे जज्बात बया करने को । सुप्रभात, 🌼🌼🌼🌼 🌼आज का हमारा विषय "चुभती ख़ामोशी" एक ऐसा विषय है जो किसी अपने के ख़ामोश होने से जिस पीड़ा का अनुभव होता है, उस अहसास को शब्दों में ढालने का एक प्रयास कीजिए... आशा है आप लोगों को पसंद आएगा। 🌼आप सब सुबह की चाय की चुस्की लेते हुए लिखना आरंभ कीजिए।