गृह कलेश समस्या बड़ी विकट, घर टूटे ,दिल बैठे ,मन बीहड़ वीराना, पल पल की तानाकशी ,रूखे व्यवहार से तंग आकर टंग गया फांसी के फंदे पर, गृह कलेश समस्या बड़ी विकट, घर में नाते कई,नातों की नीति भिन्न भिन्न, सामंजस्य का अभाव,कोई क्रोध की ज्वाला से जलाए घर को कोई सुलगे,कोई मन मसोस रह जाए, लड़ाई खाने,कपड़े की नहीं,जो उसके पास है, वही मेरे पास क्यों नहीं? घर में कोई उत्सव मनाए,किसी की आंखों में आंसू एक ही छत के नीचे,हालत सबके भिन्न भिन्न , भेदभाव की खाई पटती नहीं,घर में शांति रहती नहीं, तनाव, भय,दुख का वातावरण रहे सदा घर लगे नरक समान,सुबह अखबार बांचो, कभी ब्याहताएं,कभी वृद्ध कभी जवान गृह कलेश के कारण लटके फांसी पर, पन्ने पलटें इतिहास के, वर्णाश्रम,गृहस्थाश्रम,वानप्रस्थ, वृद्धाश्रम, हर उम्र के लोग रहते थे अलग,अलग, अपनी दुनियां में रहते थे प्रसन्न, बुजुर्ग भक्ति में,बच्चे अध्यन में, आज के दौर मेंबच्चे, बुजुर्ग,जवान रहें सब एक साथ, बिजली के तारों से जुड़े रहते,पल पल में झटके लगते रहते, हर पल दुर्घटना का भय लगा रहता,जिंदगियां खुद जीने के बजाय, औरों को संवारने में लगी रहती,कहीं कहीं जवानों की जिंदगियां बूढ़ों की सेवा में बीत जाए,घर में शांति रखनी है, बुजुर्ग धैर्य रखें,बच्चे स्नेह करें। ©पूर्वार्थ #Luka_chuppi