तारो की भांति जलती है, सड़को के किनारों पर । लंबे लंबे खम्बो पर, रातो में। वो चमकता था रातो में , कई साल पहले। कही अदृश्य हो गया है, रह गया है कविता और यादों में। आज कल सहलाती बहुत कम है, ये हवाय। माहिर हो गई है , धूल के थपेड़े लगाने में । लगता है , खराब हो गई है आंखे मेरी । या धुंध है ज्यादा, आसमानों में। दम घुटता है अब मेरा, दिल्ली शहर में। लग रहा है जैसे , रह रहे है कारखानों मे #प्रदूषण #यकदीदी #यकबाबा #यककोट