सबने समझा कि वो हैं सोयी आँखें न पहचाना कोई कि वो रोयी आँखें। रात का ओस पलकों से समेट कर, क़तरा– क़तरा उसने भिगोयी आँखें। देख उनकी आँखों की अजनबियत, नमक के पानी से उसने धोयी आँखें। देखी थी वो रात गए तक रोयी आँखें कि कई सदियों से हैं न सोयी आँखें। एक उमर बीत गयी उनको बिन देखे, पुराने ख़त सी अबतक संजोयी आँखें। ... अबोध_मन//”फरीदा” . ©अवरुद्ध मन #अबोध_मन सबने समझा कि वो हैं सोयी आँखें न पहचाना कोई कि वो रोयी आँखें। रात का ओस पलकों से समेट कर, क़तरा– क़तरा उसने भिगोयी आँखें। देख उनकी आँखों की अजनबियत,