जनहित की रामायण - 55 कुदरत ने कहर ढाया,सत्ताधारियों ने ज़ख़्मों पे नमक रगड़वाया, यातायात बंद करा, टैंकरों से उतार उतार के पुलिस से पिटवाया । रोजी-रोटी छीन, हाथ फैलवा, दया धर्म का आधा अधूरा अन्न खिलवाया, जिन्होंने ये ज़ुल्म ढाया, अफ़सोस हमने ही उन्हें सत्ता में बिठाया ।। सार्वजानिक निजी सब यातायात बंद किये ही, खाने के ढाबे भी किये बंद । भूखा-प्यासा कोसों चला, मानो जीते जी मौत दिखाने की ली हो सौगंध ।। काठ की हाँडी एक बार चढ़ती, इतना भी समझता नहीं नेता, मीडिया चाटुकारिता तले सही आंकलन भी उन्हें नहीं देता । महादेवी ईवीएम की मेहर हो तो कुछ उम्मीद है, वरना मतपत्र मतदान तो ज़मानत भी ज़ब्त करा लेगा ।। मंथरा-कैकेयी ने रामराज से रक्खा दूर, अब हज़ारों मंथराओ का चल रहा तांडव । महाभारत में भी सत्ता से दूर रक्खे गये, सर्वप्रिय सर्वगुण संपन्न पाण्डव ।। जनसत्ता नहीं साजिशों की सत्ता का है ये दौर, कमा सकने वाली सक्षमता को भी नसीब नहीं कौर । असल में बापू आज़ादी दिला कर गये ऐतिहासिक भूल, अहिंसा के विरोध में आज युवा को गुमराह कर थमाये जा रहे त्रिशूल ।। हे राम... - आवेश हिंदुस्तानी 22.01.2022 #aaveshvaani #janmannkibaat #janhitkiramayan #janhitmejaari #corona #mahamari #politics