इन नैनों के दो खिड़कियों से झाँकता हूँ मैं बाहर, चंदा की चाँदनी में धुला हुआ देखता हूँ मैं एक प्यारा शहर! इसी शहर में कहीं मुझे बनाना है तेरे साथ एक घर, इंतज़ार तेरा बस रहता है अब तो मुझे हर शामों सहर!! इन नैनों के दो खिड़कियों से झाँकता हूँ मैं बाहर, चंदा की चाँदनी में धुला हुआ देखता हूँ मैं एक प्यारा शहर! इसी शहर में कहीं मुझे बनाना है तेरे साथ एक घर, इंतज़ार तेरा बस रहता है अब तो