COVID 19: विषय चिंता का है पर समय गंभीर चिंतन का। सभ्यता की अपेक्षाओं के साथ सभ्यता के मूल्यों के समंजन एवं आवश्यक संशोधन का। विकास की जिस भागमभाग में हम नियम, संयम, सदाचार और मानवोचित व्यवहार की अनुशासनिक पद्धति से द्रुत गति से आगे निकल चुके हैं, जिसे हम बन्धनों से मुक्ति, या स्वतंत्र होना समझ रहें हैं, वस्तुतः इस क्रम में हम अपने भीतर ही चुनौतियों की श्रृंखला तैयार करते चल रहे हैं। वैचारिक और व्यवहारिक नियमित निवेश, जो जीवन की आशा, सुरक्षा और विकास का है उस पर हमारा कोई ध्यान नहीं है। व्यवहार साझे का है, विकास भी प्रसन्नता और दुःख भी। हमारी निरंकुश जीवन शैली का परिणाम भी साझे का है। जब विश्व असंतुलन की आपदा से जूझ रहा है, हम किसी भी प्रकोष्ठ में बैठकर स्वयं को यदि सुरक्षित समझें तो ये हमारी सबसे बड़ी भूल है। संग्रह की होड़ में समस्या हम भीतर लेकर घूम रहे हैं, समाधान भी भीतर ही है। आचरण की सभ्यता जीवन की सुरक्षा का दैनिक निवेश है। यही उद्गम है मानवता का, यही पोषण और पल्लवन है। नियमन ही स्वाभाविक नियंत्रण है। विकार जैविक हों, रासाययनिक, भौतिक या अधिभौतिक; संस्कार ही इसका संस्करण एवं परिशोधन कर सकते हैं। वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए मानवीय संचेतना की समरस साझेदारी ज़रूरी है। COVID 19 छोटी-बड़ी चेतावनियों के बीच मानवजाति को एक कड़ी चेतावनी है मानवता के मानक तय करने की। #toyou #yqpendemicthreat #yqyouaretheworld #yqhabitsarelife #yqwarning #yqpatience #practice #yqpossibilities